चर्चा आम है..
अतुल पटैरिया, नई दिल्ली। भारतीय टेनिस सनसनी, भारतीय टेनिस परी, युवा भारत की पहचान और भारतीय दिलों की धड़कन.. ऐसे ही कई नामों से हमने उन्हें सम्मान दिया, प्यार दिया। शादी उनका बेहद निजी मामला है। वह किसी से भी शादी करें, कोई उन्हें रोक-टोक नहीं सकता। लेकिन निजता और लोकप्रियता एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। चर्चा तो होगी ही। हो भी रही है। लोगों को जसे ही यह खबर मिली कि सानिया पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से निकाह करने जा रही हैं, परंपरागत भारतीय होने के नाते लोगों को कुछ अचरज महसूस हुआ। सब कह रहे हैं.. पाकिस्तानी ही क्यों? हिंदुस्तानी भले न सही, ईरानी, अफगानी, तुर्कमेनिस्तानी.. कोई भी होता तो भी ठीक था। बैठे ठाले हम पाकिस्तानियों के साले बन जाएंगे। लेकिन क्या करें, यह बेहद निजी मामला है। कोई कर भी क्या सकता है, सिवाय बातें करने के। हर कोई बाल ठाकरे तो हो नहीं सकता ना, जो फरमान सुना दे कि.. सानिया तुम्हें वहां शादी करनी है तो यहां से नाता तोड़ो..!
बहरहाल, चर्चाओं का बाजार गर्म है। हर सानिया-प्रेमी भारतीय इस बात पर खफा है कि आख़िर उसने पाकिस्तानी ही क्यों चुना? लोगों को बात पच नहीं रही है? कन्फ्यूान में हैं। अपनी चहेती सानिया को लेकर अब वह कैसे रिएक्ट करें। शादी के बाद न जाने क्या होगा। यह भारतीय टेनिस सनसनी जब टेनिस कोर्ट पर उतरेगी तो पाकिस्तानी टेनिस सनसनी न कही जाने लगे। हम 'साले' 'बाबुल' 'पीहर वाले' सच्चे दिल से उसकी जीत की दुआ करते रहेंगे। पाकिस्तानी कभी कहते थे कि ‘लता मंगेशकर दे दो और कश्मीर ले लो...'। यहां तो बिना कुछ लिए ही हम उनके ‘साले साहब' बन बैठे। हाल ही में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल-3 में शामिल न किए जाने पर जो ‘अंतर्राष्ट्रीय' बवाल मचा था, शुक्र है उन्हें कुछ राहत मिलेगी। सानिया नए रिश्ते की शुरुआत करने जा रही हैं, हम यह भी दुआ करेंगे कि सानिया अपने ‘ससुराल वालों' को ‘सही रास्ते' पर लाने में कामयाब हों और ‘मायके' को चैनोअमन दिलाएं।
Tuesday, March 30, 2010
Sunday, March 28, 2010
भड़कने से कुछ हासिल नहीं होगा खेल मंत्री जी
अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों के इतिहास में भारत के लिए अब तक की सबसे बड़ी मेजबानी घोषित हो चुके आगामी राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों पर ‘घोषितज् खर्च तकरीबन 1.6 बिलियन डॉलर है जबकि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) ने अपने वर्तमान सत्र से लगभग इतनी ही राशि कमाने की घोषणा की है। अंतर स्पष्ट है..।
इंडियन प्रीमियर लीग की ग्लोबल ब्रांड वैल्यू 4.13 बिलियन डॉलर के साथ विश्व में किसी भी खेल प्रतियोगिता के लिहाज से दूसरे नंबर पर है। (इंग्लिश प्रीमियर लीग की ब्रांड वैल्यू 12 बिलियन डॉलर है लेकिन ग्रोथ रेट के मामले में आईपीएल आगे है)।
इधर, भारत सरकार ने खेलों के लिये इस साल बतौर बजटीय आंटन 3565 करोड़ रुपए घोषित किए हैं (गत वर्ष बजटीय आवंटन 3706 करोड़ रुपए था) जिसमें से 2069 करोड़ रुपए आगामी राष्ट्रमंडल खेलों के लिये दिए गए हैं। शेष बचे 1496 करोड़ रुपए ‘सरकारीज् खेलों के विकास और संवर्धन के खाते में आते हैं। (सरकारी खेलों से आशय उन तकरीबन 75 खेलों से है जो भारतीय ओलंपिक संघ से पंजीबद्ध हैं। प्रत्येक खेल का संचालन राज्य व राष्ट्र स्तरीय लोकतांत्रिक इकाईयों के रूप में उनके खेल संघ करते हैं। क्रिकेट इनमें शामिल नहीं है)। इस तरह एक ओर जहां आईपीएल की महज दो फ्रैंचाइजी (दस साल के लिए) 3235.53 करोड़ रुपए में बिकती हैं वहीं 75 खेलों के लिए विकास और प्रबंधन के लिए सरकार कुल 3565 करोड़ रुपए आवंटित करती है। दोनों राशियों के बीत अंतर अधिक नहीं है लेकिन अंतर स्पष्ट है..।
अब खेल मंत्री जी आईपीएल पर भड़क रहे हैं तो उन्हें इस स्पष्ट अंतर को भी समझ लेना चाहिए। और सवाल तो यह भी उठता है कि आखिर खेल मंत्री को आईपीएल या बीसीसीआई पर भड़कने का हक ही कहां है? क्रिकेट ‘सरकारीज् खेल नहीं है और न ही सरकारी मदद की उसे कभी दरकार रही है। हां, भविष्य में यदि ओलंपिक में क्रिकेट को शामिल किया जाता है तो अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के संविधान के दायरे में आकर क्रिकेट भी ‘सरकारीज् खेल बन सकता है लेकिन तब भी मुश्किल है कि आईसीसी और बीसीसीआई जसी संस्थाएं सरकारी तंत्र की उलझनों में उलङों। पिछले दिनों जब अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की साझीदार विश्व डोपिंग रोधी संस्था वाडा ने भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने नियमों में बांधने की कोशिश की तो खिलाड़ियों की मर्जी के बिना उसे मुंह की खानी पड़ी। आईसीसी भी भारतीय क्रिकेटरों और बीसीसीआई को मजबूर नहीं कर सकी। खेल मंत्री तब भी भड़के थे लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। अंतर स्पष्ट है..।
आप कितना भी भड़क लें, कितनी भी कोशिश कर लें कुछ हासिल नहीं होने वाला। अब आप कर रहे हैं आपको क्रिकेट की चिंता है। क्रिकेट के सिद्दांतों की चिंता है। आप आरोप लगा रहे हैं कि आईपीएल के कारोबार के कारण क्रिकेट बर्बाद हो रहा है। आप मीडिया को भी दोष दे रहे हैं कि उसने भी क्रिकेट से मुनाफा कमाने के चलते दूसरे खेलों को हाशिये पर रख छोड़ा है। आप खेलों का कारोबार न करने की बात कर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर आप यह भी कह रहे हैं कि ‘आईपीएल से चूंकि बहुत मुनाफा हो रहा है इसलिए उनसे अधिक से अधिक कर वसूलना चाहिए और इसे अन्य खेलों के लिये इस्तेमाल करना चाहिए।ज् बीसीसीआई स्वेच्छा से अन्य खेलों की मदद के लिए धनराशि दे रहा है लेकिन आप तो उल्टे यह भी कह रहे हैं कि ‘उनके पास जितना धन है, उसे ेखते हुए यह काफी कम है। े इससे ज्याा े सकते हैं। मैं उनसे इससे ज्याा योगान के लिये कहूंगा।ज् अब यह कैसे संभव है कि बिना कारोबार के कोई मुनाफा कमा ले और आपको ज्यादा से ज्यादा ‘योगदानज् भी दे दे?
मुद्दा आईपीएल का पक्ष-विपक्ष लेने का नहीं है लेकिन आप दूसरे खेलों के विकास की दुहाई दे रहे है, आप जानते हैं कि कामचलाऊ सरकारी बजट और खेल संघों में व्याप्त ‘पुश्तैनी लोकतंत्रज् के भरोसे आपको कुछ हासिल नहीं होगा। आप खुद भी कारपोरेट जगत से खेलों में दिलचस्पी लेने की मांग करते रहे हैं लेकिन जब तक परंपरात्मक ‘सरकारीज् व्यवस्था कायम रहेगी और खेलों को कारपोरेट कल्चर में ढालने से गुरेज किया जाता रहेगा तब तक क्रिकेट और अन्य 75 खेलों में अंतर बना रहेगा। और यह अंतर बेहद स्पष्ट है...
इंडियन प्रीमियर लीग की ग्लोबल ब्रांड वैल्यू 4.13 बिलियन डॉलर के साथ विश्व में किसी भी खेल प्रतियोगिता के लिहाज से दूसरे नंबर पर है। (इंग्लिश प्रीमियर लीग की ब्रांड वैल्यू 12 बिलियन डॉलर है लेकिन ग्रोथ रेट के मामले में आईपीएल आगे है)।
इधर, भारत सरकार ने खेलों के लिये इस साल बतौर बजटीय आंटन 3565 करोड़ रुपए घोषित किए हैं (गत वर्ष बजटीय आवंटन 3706 करोड़ रुपए था) जिसमें से 2069 करोड़ रुपए आगामी राष्ट्रमंडल खेलों के लिये दिए गए हैं। शेष बचे 1496 करोड़ रुपए ‘सरकारीज् खेलों के विकास और संवर्धन के खाते में आते हैं। (सरकारी खेलों से आशय उन तकरीबन 75 खेलों से है जो भारतीय ओलंपिक संघ से पंजीबद्ध हैं। प्रत्येक खेल का संचालन राज्य व राष्ट्र स्तरीय लोकतांत्रिक इकाईयों के रूप में उनके खेल संघ करते हैं। क्रिकेट इनमें शामिल नहीं है)। इस तरह एक ओर जहां आईपीएल की महज दो फ्रैंचाइजी (दस साल के लिए) 3235.53 करोड़ रुपए में बिकती हैं वहीं 75 खेलों के लिए विकास और प्रबंधन के लिए सरकार कुल 3565 करोड़ रुपए आवंटित करती है। दोनों राशियों के बीत अंतर अधिक नहीं है लेकिन अंतर स्पष्ट है..।
अब खेल मंत्री जी आईपीएल पर भड़क रहे हैं तो उन्हें इस स्पष्ट अंतर को भी समझ लेना चाहिए। और सवाल तो यह भी उठता है कि आखिर खेल मंत्री को आईपीएल या बीसीसीआई पर भड़कने का हक ही कहां है? क्रिकेट ‘सरकारीज् खेल नहीं है और न ही सरकारी मदद की उसे कभी दरकार रही है। हां, भविष्य में यदि ओलंपिक में क्रिकेट को शामिल किया जाता है तो अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के संविधान के दायरे में आकर क्रिकेट भी ‘सरकारीज् खेल बन सकता है लेकिन तब भी मुश्किल है कि आईसीसी और बीसीसीआई जसी संस्थाएं सरकारी तंत्र की उलझनों में उलङों। पिछले दिनों जब अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की साझीदार विश्व डोपिंग रोधी संस्था वाडा ने भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने नियमों में बांधने की कोशिश की तो खिलाड़ियों की मर्जी के बिना उसे मुंह की खानी पड़ी। आईसीसी भी भारतीय क्रिकेटरों और बीसीसीआई को मजबूर नहीं कर सकी। खेल मंत्री तब भी भड़के थे लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। अंतर स्पष्ट है..।
आप कितना भी भड़क लें, कितनी भी कोशिश कर लें कुछ हासिल नहीं होने वाला। अब आप कर रहे हैं आपको क्रिकेट की चिंता है। क्रिकेट के सिद्दांतों की चिंता है। आप आरोप लगा रहे हैं कि आईपीएल के कारोबार के कारण क्रिकेट बर्बाद हो रहा है। आप मीडिया को भी दोष दे रहे हैं कि उसने भी क्रिकेट से मुनाफा कमाने के चलते दूसरे खेलों को हाशिये पर रख छोड़ा है। आप खेलों का कारोबार न करने की बात कर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर आप यह भी कह रहे हैं कि ‘आईपीएल से चूंकि बहुत मुनाफा हो रहा है इसलिए उनसे अधिक से अधिक कर वसूलना चाहिए और इसे अन्य खेलों के लिये इस्तेमाल करना चाहिए।ज् बीसीसीआई स्वेच्छा से अन्य खेलों की मदद के लिए धनराशि दे रहा है लेकिन आप तो उल्टे यह भी कह रहे हैं कि ‘उनके पास जितना धन है, उसे ेखते हुए यह काफी कम है। े इससे ज्याा े सकते हैं। मैं उनसे इससे ज्याा योगान के लिये कहूंगा।ज् अब यह कैसे संभव है कि बिना कारोबार के कोई मुनाफा कमा ले और आपको ज्यादा से ज्यादा ‘योगदानज् भी दे दे?
मुद्दा आईपीएल का पक्ष-विपक्ष लेने का नहीं है लेकिन आप दूसरे खेलों के विकास की दुहाई दे रहे है, आप जानते हैं कि कामचलाऊ सरकारी बजट और खेल संघों में व्याप्त ‘पुश्तैनी लोकतंत्रज् के भरोसे आपको कुछ हासिल नहीं होगा। आप खुद भी कारपोरेट जगत से खेलों में दिलचस्पी लेने की मांग करते रहे हैं लेकिन जब तक परंपरात्मक ‘सरकारीज् व्यवस्था कायम रहेगी और खेलों को कारपोरेट कल्चर में ढालने से गुरेज किया जाता रहेगा तब तक क्रिकेट और अन्य 75 खेलों में अंतर बना रहेगा। और यह अंतर बेहद स्पष्ट है...
Tuesday, March 23, 2010
कहीं यह छलावा तो नहीं !
आतंकी धमकियों और सुरक्षा संबंधी अटकलों जसी तमाम चुनौतियों के बावजूद अंतत: दिल्ली में 12वां हॉकी विश्व कप सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। छह माह बाद दिल्ली में ही होने जा रहे 19वें राष्ट्रमंडल खेल आयोजन के लिहाज से हॉकी विश्व कप को रिहर्सल के रूप में देखा जा रहा था। पूरी दुनिया के अलावा खासतौर पर इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका की पैनी नजरें भारत की मेजबानी पर गड़ी हुई थीं। इन देशों ने अपनी टीमों को हॉकी विश्व कप के लिए दिल्ली भेजने से पहले सुरक्षा संबंधी पहलू को बेहद गंभीरता से लिया था। यह पांच देश आगामी राष्ट्रमंडल खेलों में भी शामिल हैं। बहरहाल, दिल्ली में हॉकी विश्व कप की निर्विघ्न और सफल मेजबानी करके भारत ने यह संकेत दे दिया है कि वह तमाम गतिरोधों और चुनौतियों के बावजूद इस तरह के बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों की सुरक्षित और हर लिहाज से सफल मेजबानी कर सकता है।
दिल्ली सहित पूरे देश के लिए आगामी राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी है। राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में यह 1.6 बिलियन यूएस डॉलर के हिसाब से अब तक की सबसे महंगी मेजबानी होगी। खेल से इतर, मेजबानी से जुड़ी अधोसंरचनात्मक तैयारियों पर भी मेगा-बजट अपनी सीमाएं तोड़ चुका है। विदेशी मेहमानों को इम्प्रेस करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। इस पूरी जद्दोजहद में खेल और खिलाड़ियों के अलावा पूरा फोकस विदेशी मेहमानों की आव-भगत से जुड़ी तैयारियों पर किया जा रहा है। अनुमान लगाए जा चुके हैं कि इस खेल आयोजन के दौरान लगभग 20 लाख विदेशी पर्यटक दिल्ली आएंगे।
हॉकी विश्व कप को वाकई रिहर्सल के रूप में देखें तो विदेशी पर्यटकों के मामले में यह फ्लॉप-शो साबित हुआ। बावजूद इसके कि इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका जसे वह प्रमुख देश भी इस हॉकी विश्व कप में भाग ले रहे थे जो आगामी राष्ट्रमंडल खेलों में भी हर लिहाज से बड़ी भूमिका में हैं। 71 देशों के इस आयोजन में इन पांच देशों के अतिरिक्त शेष मेहमान देश हर लिहाज से बहुत छोटे हैं। भारतीय पर्यटन उद्योग को भी इन्हीं प्रमुख देशों से पर्यटकों के आने की उम्मीद है। लेकिन हॉकी विश्व कप के दौरान अपनी-अपनी टीमों को देखने भी इन देशों से पर्यटक क्यों नहीं आए? संकेत ठीक नहीं है। स्टेडिमय की दर्शकदीर्घा में इक्का-दुक्का विदेशी दर्शक ही दिखाई दिए।
बहरहाल, राष्ट्रमंडल खेलों में शामिल 17 खेलों में हॉकी अग्रणी है। ऐसे में जब हॉकी विश्वकप को ही विदेशी दर्शक नहीं मिले तो राष्ट्रमंडल में कितनी उम्मीद रखी जाए।
-राष्ट्रमंडल खेलों (03 सितंबर-14 अक्टूबर) के दौरान तकरीबन 20 लाख पर्यटकों के भारत आने की संभावना जताई जा रही है।
-पर्यटकों की सुविधा व रहने के लिए सरकार कुल 10,540 कमरों का निर्माण करा रही है जिसमें से 7,307 से अधिक कमरों का निर्माण हो चुका है।
-विदेशी पर्यटकों के लिए इन साढ़े दस हजार कमरों की तैयारी के अंतर्गत नए होटल, डीडीए हाऊसिंग यूनिट्स और ‘बेड एंड ब्रेकफास्टज् जसी योजनाएं शामिल हैं।
-सरकार ने 31 मार्च 2010 तक तैयार हो जाने वाले होटलों व अन्य परियोजनाओं को ‘फाइव ईयर टैक्स हॉलीडेज् प्लान का वादा भी किया है। यह प्लान सिर्फ एनसीआर क्षेत्र में बन रहे होटलों पर ही लागू होगा।
दिल्ली सहित पूरे देश के लिए आगामी राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी है। राष्ट्रमंडल खेलों के इतिहास में यह 1.6 बिलियन यूएस डॉलर के हिसाब से अब तक की सबसे महंगी मेजबानी होगी। खेल से इतर, मेजबानी से जुड़ी अधोसंरचनात्मक तैयारियों पर भी मेगा-बजट अपनी सीमाएं तोड़ चुका है। विदेशी मेहमानों को इम्प्रेस करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। इस पूरी जद्दोजहद में खेल और खिलाड़ियों के अलावा पूरा फोकस विदेशी मेहमानों की आव-भगत से जुड़ी तैयारियों पर किया जा रहा है। अनुमान लगाए जा चुके हैं कि इस खेल आयोजन के दौरान लगभग 20 लाख विदेशी पर्यटक दिल्ली आएंगे।
हॉकी विश्व कप को वाकई रिहर्सल के रूप में देखें तो विदेशी पर्यटकों के मामले में यह फ्लॉप-शो साबित हुआ। बावजूद इसके कि इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका जसे वह प्रमुख देश भी इस हॉकी विश्व कप में भाग ले रहे थे जो आगामी राष्ट्रमंडल खेलों में भी हर लिहाज से बड़ी भूमिका में हैं। 71 देशों के इस आयोजन में इन पांच देशों के अतिरिक्त शेष मेहमान देश हर लिहाज से बहुत छोटे हैं। भारतीय पर्यटन उद्योग को भी इन्हीं प्रमुख देशों से पर्यटकों के आने की उम्मीद है। लेकिन हॉकी विश्व कप के दौरान अपनी-अपनी टीमों को देखने भी इन देशों से पर्यटक क्यों नहीं आए? संकेत ठीक नहीं है। स्टेडिमय की दर्शकदीर्घा में इक्का-दुक्का विदेशी दर्शक ही दिखाई दिए।
बहरहाल, राष्ट्रमंडल खेलों में शामिल 17 खेलों में हॉकी अग्रणी है। ऐसे में जब हॉकी विश्वकप को ही विदेशी दर्शक नहीं मिले तो राष्ट्रमंडल में कितनी उम्मीद रखी जाए।
-राष्ट्रमंडल खेलों (03 सितंबर-14 अक्टूबर) के दौरान तकरीबन 20 लाख पर्यटकों के भारत आने की संभावना जताई जा रही है।
-पर्यटकों की सुविधा व रहने के लिए सरकार कुल 10,540 कमरों का निर्माण करा रही है जिसमें से 7,307 से अधिक कमरों का निर्माण हो चुका है।
-विदेशी पर्यटकों के लिए इन साढ़े दस हजार कमरों की तैयारी के अंतर्गत नए होटल, डीडीए हाऊसिंग यूनिट्स और ‘बेड एंड ब्रेकफास्टज् जसी योजनाएं शामिल हैं।
-सरकार ने 31 मार्च 2010 तक तैयार हो जाने वाले होटलों व अन्य परियोजनाओं को ‘फाइव ईयर टैक्स हॉलीडेज् प्लान का वादा भी किया है। यह प्लान सिर्फ एनसीआर क्षेत्र में बन रहे होटलों पर ही लागू होगा।
Friday, March 19, 2010
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