Atul Pateriya by Cartoonist Mansoor

Atul Pateriya by Cartoonist Mansoor

Sunday, March 28, 2010

भड़कने से कुछ हासिल नहीं होगा खेल मंत्री जी

अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों के इतिहास में भारत के लिए अब तक की सबसे बड़ी मेजबानी घोषित हो चुके आगामी राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों पर ‘घोषितज् खर्च तकरीबन 1.6 बिलियन डॉलर है जबकि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) ने अपने वर्तमान सत्र से लगभग इतनी ही राशि कमाने की घोषणा की है। अंतर स्पष्ट है..।
इंडियन प्रीमियर लीग की ग्लोबल ब्रांड वैल्यू 4.13 बिलियन डॉलर के साथ विश्व में किसी भी खेल प्रतियोगिता के लिहाज से दूसरे नंबर पर है। (इंग्लिश प्रीमियर लीग की ब्रांड वैल्यू 12 बिलियन डॉलर है लेकिन ग्रोथ रेट के मामले में आईपीएल आगे है)।
इधर, भारत सरकार ने खेलों के लिये इस साल बतौर बजटीय आंटन 3565 करोड़ रुपए घोषित किए हैं (गत वर्ष बजटीय आवंटन 3706 करोड़ रुपए था) जिसमें से 2069 करोड़ रुपए आगामी राष्ट्रमंडल खेलों के लिये दिए गए हैं। शेष बचे 1496 करोड़ रुपए ‘सरकारीज् खेलों के विकास और संवर्धन के खाते में आते हैं। (सरकारी खेलों से आशय उन तकरीबन 75 खेलों से है जो भारतीय ओलंपिक संघ से पंजीबद्ध हैं। प्रत्येक खेल का संचालन राज्य व राष्ट्र स्तरीय लोकतांत्रिक इकाईयों के रूप में उनके खेल संघ करते हैं। क्रिकेट इनमें शामिल नहीं है)। इस तरह एक ओर जहां आईपीएल की महज दो फ्रैंचाइजी (दस साल के लिए) 3235.53 करोड़ रुपए में बिकती हैं वहीं 75 खेलों के लिए विकास और प्रबंधन के लिए सरकार कुल 3565 करोड़ रुपए आवंटित करती है। दोनों राशियों के बीत अंतर अधिक नहीं है लेकिन अंतर स्पष्ट है..।
अब खेल मंत्री जी आईपीएल पर भड़क रहे हैं तो उन्हें इस स्पष्ट अंतर को भी समझ लेना चाहिए। और सवाल तो यह भी उठता है कि आखिर खेल मंत्री को आईपीएल या बीसीसीआई पर भड़कने का हक ही कहां है? क्रिकेट ‘सरकारीज् खेल नहीं है और न ही सरकारी मदद की उसे कभी दरकार रही है। हां, भविष्य में यदि ओलंपिक में क्रिकेट को शामिल किया जाता है तो अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के संविधान के दायरे में आकर क्रिकेट भी ‘सरकारीज् खेल बन सकता है लेकिन तब भी मुश्किल है कि आईसीसी और बीसीसीआई जसी संस्थाएं सरकारी तंत्र की उलझनों में उलङों। पिछले दिनों जब अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति की साझीदार विश्व डोपिंग रोधी संस्था वाडा ने भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने नियमों में बांधने की कोशिश की तो खिलाड़ियों की मर्जी के बिना उसे मुंह की खानी पड़ी। आईसीसी भी भारतीय क्रिकेटरों और बीसीसीआई को मजबूर नहीं कर सकी। खेल मंत्री तब भी भड़के थे लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। अंतर स्पष्ट है..।
आप कितना भी भड़क लें, कितनी भी कोशिश कर लें कुछ हासिल नहीं होने वाला। अब आप कर रहे हैं आपको क्रिकेट की चिंता है। क्रिकेट के सिद्दांतों की चिंता है। आप आरोप लगा रहे हैं कि आईपीएल के कारोबार के कारण क्रिकेट बर्बाद हो रहा है। आप मीडिया को भी दोष दे रहे हैं कि उसने भी क्रिकेट से मुनाफा कमाने के चलते दूसरे खेलों को हाशिये पर रख छोड़ा है। आप खेलों का कारोबार न करने की बात कर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर आप यह भी कह रहे हैं कि ‘आईपीएल से चूंकि बहुत मुनाफा हो रहा है इसलिए उनसे अधिक से अधिक कर वसूलना चाहिए और इसे अन्य खेलों के लिये इस्तेमाल करना चाहिए।ज् बीसीसीआई स्वेच्छा से अन्य खेलों की मदद के लिए धनराशि दे रहा है लेकिन आप तो उल्टे यह भी कह रहे हैं कि ‘उनके पास जितना धन है, उसे ेखते हुए यह काफी कम है। े इससे ज्याा े सकते हैं। मैं उनसे इससे ज्याा योगान के लिये कहूंगा।ज् अब यह कैसे संभव है कि बिना कारोबार के कोई मुनाफा कमा ले और आपको ज्यादा से ज्यादा ‘योगदानज् भी दे दे?
मुद्दा आईपीएल का पक्ष-विपक्ष लेने का नहीं है लेकिन आप दूसरे खेलों के विकास की दुहाई दे रहे है, आप जानते हैं कि कामचलाऊ सरकारी बजट और खेल संघों में व्याप्त ‘पुश्तैनी लोकतंत्रज् के भरोसे आपको कुछ हासिल नहीं होगा। आप खुद भी कारपोरेट जगत से खेलों में दिलचस्पी लेने की मांग करते रहे हैं लेकिन जब तक परंपरात्मक ‘सरकारीज् व्यवस्था कायम रहेगी और खेलों को कारपोरेट कल्चर में ढालने से गुरेज किया जाता रहेगा तब तक क्रिकेट और अन्य 75 खेलों में अंतर बना रहेगा। और यह अंतर बेहद स्पष्ट है...

No comments:

Post a Comment