Atul Pateriya by Cartoonist Mansoor

Atul Pateriya by Cartoonist Mansoor

Tuesday, May 4, 2010

हम खुद ही कह रहे हैं कि इस्लामाबाद में रॉ का स्टेशन है..

इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में बतौर सैकेंड सेक्रेटरी तैनात रहीं माधुरी गुप्ता पर भले ही पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप लगे हैं लेकिन अभी यह केवल आरोप ही हैं।
पाकिस्तान उच्चायोग में पदस्थ होने से पहले माधुरी नई दिल्ली स्थित इंडियन काउंसिल फॉर वर्ल्ड अफेसर्य में काम कर रही थीं। जसा कि कहा गया है कि वह पाकिस्तान (भारतीय उच्चायोग) जाने के लिए बेहद उतावली थीं। और अंतत: वह वहां पहुंच गईं। उन्हें पिछले दिनों बहाने से स्वदेश बुलाया गया और गुप्त सूचनाएं लीक करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर कहा कि माधुरी संदेह के घेरे में (अंडर स्कैनर) थीं और उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत मिलने के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। घटनाक्रम को पांच माह पीछे जाकर देखें तो थ्योरी में काफी पेंच नजर आ रहे हैं, जिनमें दो बेहद दिलचस्प हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से भारतीय मीडिया ने अब तक बताया कि माधुरी इस्लामाबाद में मुदस्सर राणा नाम के इंटर सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) एजेंट के जरिये गुप्त भारतीय सूचनाएं लीक कर रही थीं। कहा गया कि 53 वर्षीय माधुरी को राणा ने प्यार और पैसे (हनी ट्रैप) के लोभ में फंसाकर इस्तेमाल किया। माधुरी के पाकिस्तान और भारत स्थित बैंक खातों में बड़ी रकम होने की बात भी कही गई (हालांकि अभी पुष्ट तौर पर आंकड़े सामने नहीं आए हैं)। जसा कि कहा गया कि पिछले कुछ महीनों से माधुरी संदेह के दायरे में आ चुकी थीं, लिहाजा उन पर भारतीय इंटेलिजेंस की नज़र थी और सबूत मिलते ही उन्हें वापस बुलाकर गिरफ्तार कर लिया गया। बताया गया (सरकारी सूत्रों के हवाले से मीडिया के जरिये, जिसका भारतीय विदेश मंत्रालय ने खंडन भी नहीं किया) कि पाकिस्तान स्थित भारतीय गुप्तचर संस्था ‘रॉज् (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के स्टेशन हेड आर.के. शर्मा ने पांच माह पूर्व माधुरी पर संदेह व्यक्त किया था। अब कहा जा रहा है कि खुद शर्मा भी संदेह के घेरे में हैं।
पहला पेंच, क्या आधिकारिक तौर पर भारत यह स्वीकार करता है कि उसकी गुप्तचर एजेंसी (रॉ) का इस्लामाबाद में स्टेशन है। और गुप्तचर एजेंसी के स्टेशन हेड का नाम भी सार्वजनिक किया जा सकता है?
दूसरा पेंच, माधुरी की दिल्ली में गिरफ्तारी के फ़ौरन बाद पुलिस के हवाले से कहा गया कि माधुरी ने खुद पर लगे आरोप और अपना जुर्म कबूल लिया है। यही नहीं उसने यह भी कहा कि वह विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अफसरों के बर्ताव से खफ़ा थी और उनसे बदला लेने के लिए, उन्हें सबक सिखाने के लिए उसने ऐसा (आईएसआई के लिए जासूसी) किया। लेकिन अदालत में पेश करते ही माधुरी ने कहा कि वह निर्दोष है और उसे फंसाया जा रहा है। दोनों ही बातों में बहुत बड़ा विरोधाभास है। पहला बयान, पुलिस के हवाले से मीडिया के जरिये आया था, माधुरी ने ऐसा कहा था या नहीं, प्रमाण अनुपलब्ध हैं। दूसरा बयान चूंकि उन्होंने खुद अदालत के सामने दिया, लिहाजा इसे ही उनका प्रथम बयान माना जा सकता है। मतलब यह कि उन्होंने आरोपों को ग़लत ठहराया है। पुलिस के पास भी पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं, लिहाजा उसे दो बार ज्यूडिशियल कस्टडी मांगनी पड़ी।
बहलहाल, इस मामले में अभी किसी भी निष्कर्स पर पहुंचना जल्दबाजी होगा। कुछ सेवानिवृत्त राजनयिकों से चर्चा करने पर पहला संकेत यह मिला कि इंटेलिजेंस(अंतर्राष्ट्रीय गुप्तचरी)अपने-आप में बेहद पेंचीदा और जटिल क्षेत्र है और इसमें सब कुछ जायज है। यानी डबल-एजेंट थ्योरी से भी इंकार नहीं किया जा सकता। डेविड कॉलमैन हेडली का ताजा मामला सामने है कि किस तरह यह अमेरिकी खुफ़िया (सीआईए) एजेंट अल-क़ायदा और आईएसआई के लिए भी काम कर रहा था। मामले तब सीआईए के हाथ से निकल गया जब इस डबल एजेंट ने उसे ही डबल-क्रॉस करते हुए मुंबई में (26/11) षड्यंत्र रच डाला। बावजूद इसके सीआईए ने उसे सुरक्षित निकास (सेफ एकिजट) देते हुए सुरक्षित जगह (अमेरिकी जेल) मुहैया करा दी।
माधुरी मामले में भी जानकार फिलहाल कुछ भी निष्कर्स देने से परहेज कर रहे हैं। यदि मान भी लिया जाए कि माधुरी पर आरोप साबित हो जाते हैं तो जानकारों (हमारे संपर्कसूत्र कुछ सेवा निवृत्त राजनयिक) का कहना है कि इस पूरे मामले में विदेश मंत्रालय से लेकर भारतीय इंटेलिजेंस (रॉ) की कार्यप्रणाली भी उजागर हो जाती है। यानी आप खुद यह बता रहे हैं कि कैसे एक महिला आईएफएस पाकिस्तान जाने की जद करती है और आप बिना परहेज किए उसे भेज भी देते हैं। फिर, कैसे उस पर वहां तैनात आपका ही इंटेलिजेंस हेड संदेह व्यक्त करता है, जिसे बाद में खुद आप ही अंडर स्कैनर बताते हैं। और आप इस बात के सार्वजनिक होने पर कोई आपत्ति नहीं जताते कि वहां (पाकिस्तान में) आपका इंटेलिजेंस(रॉ)स्टेशन है और उसका हैड फ़लां-फ़लां है। पांच महीने तक आप संदेह के घेरे में काम कर रही अपने ही उच्चायोग की एक सैकेंड रैंक अधिकारी को फ्री हैंड दिए रहते हैं। फिर उसे धोखे से वापस बुलाकर सीधे गिरफ्तार करा देते हैं। अदालत में पेश करने से पहले ही पुलिस इंटेरोगेट कर लेती है और मीडिया को बता देते हैं कि उसने गुनाह कबूल कर लिया और कहा कि अधिकारियों से बदला लेने के लिए ऐसा किया। फिर अदालत में उक्त बयान पूरी तरह पलट जाता है और वह खुद को निर्दोष करार देती है। और आप अदालत में साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाते जबकि आप कह रहे हैं कि आपने पांच महीने तक उसे अंडर स्कैनर रखा? यानी या तो मीडिया तथ्यों को स्पष्ट नहीं कर पा रहा है या फिर आप (विदेश मंत्रालय) कुछ स्पष्ट करना ही नहीं चाहते? क्यों? क्योंकि यह इंटेलिजेंस का मामला है, जहां सब कुछ जायज है। कौन जाने कि आईएसआई और रॉ के बीच क्या शातिराना खेल चल रहा है। अदालत का फ़ैसला ही रहस्य से पर्दा उठा पाएगा?

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