हमारी टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा तो शादी करके पाकिस्तान चल दी हैं लेकिन भारत की उभरती तेज-तर्रार बैडमिंटन सनसनी साइना नेहवाल का कहना है कि वह देशवासियों की भावनाओं से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं और भविष्य में कम से कम किसी पाकिस्तानी से तो शादी नहीं करेंगी। भारत की इस नई स्पोर्ट्स आइकन ने हमें विशेष साक्षात्कार में खेल और निजी पहलुओं पर बेबाक राय रखी। साक्षात्कार के प्रमुख अंश.. भारतीय बैडमिंटन के भूत, वर्तमान और भविष्य को किस तरह देखती हैं? भूत में प्रकाश पादुकोण सर और गोपीचंद सर ने जो शुरुआत की उसे आज मैं आगे बढ़ा रही हूं। भारत में इस खेल को अब पहचान मिल रही है। मुङो उम्मीद है कि भविष्य में यह खेल यहां अपना स्थान बना लेगा। खेलों के मामले में भारत को फिलहाल किस मुकाम पर देखती हैं? हम बहुत ही पीछे हैं। आप चीन को देखिए, जनसंख्या और संसाधनों के लिहाज से हमारे समकक्ष ही है, लेकिन हम खेलों के लिहाज से उनसे सदियों पीछे हैं। फिलहाल भारत को स्पोर्टिग नेशन तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। हमें लंबा रास्ता तय करना होगा। भारत में क्रिकेट के विषय में क्या कहेंगी? कोई शक नहीं कि यह क्रिकेट क्रेजी देश है। आप कहते भी हैं कि यह यहां धर्म जसा है। लेकिन केवल क्रिकेट की सफलता या लोकप्रियता को देखकर आप यह नहीं कर सकते कि हमारे यहां खेलों का माहौल है और हम स्पोर्टिंग नेशन हैं। दूसरे खेलों की अपेक्षा यहां क्रिकेट क्यों लोकप्रिय है? क्या सोचती हैं? मेरा मानना है कि 1983 के क्रिकेट विश्वकप की जीत के बाद से क्रिकेट ने यहां लोकप्रियता की जो नींव रखी, उस पर मंजिलें बनती चली गईं। इसका श्रेय न केवल कपिल देव या सचिन तेंदुलकर जसे क्रिकेटर्स के प्रदर्शन को जाता है बल्कि बीसीसीआई के कुशल नियोजन और प्रबंधन को भी जाता है। दूसरे खेलों में यही होता आया है कि यदि खिलाड़ी अपने बूते बड़ी उपलब्धि हासिल भी करते हैं तो नियोजन और प्रबंधन की कमी के चलते न तो उन्हें व्यक्तिगत लाभ मिल पाता है और न ही उनके खेल को। क्रिकेट को छोड़ दें तो किसी खेल और खिलाड़ी की सफलता के पैमाने को किस तरह आंकेंगी? सबसे पहले तो अच्छा और निरंतर अच्छा प्रदर्शन बहुत जरूरी है। वो चाहे बैडिमिंटन में हो या टेनिस में या फिर बॉक्िंसग में, लगातार बड़ी उपलब्धियां हासिल करते जाना जरूरी है। लोकप्रियता भी बहुत बड़ा फैक्टर है। बिना लोकप्रियता के न तो खेल और न ही खिलाड़ी आगे बढ़ सकता है। बिना समर्थन के आप बड़ी उपलब्धियां लगातार हासिल नहीं कर सकते। यदि प्र्दशन और लोकप्रियता आपके पास हैं तो एंडोर्समेंट भी होगा और बाकी सबकुछ भी होगा। आपको क्या लगता है, भारत में पब्लिक डिमांड में बने रहने के लिए क्या-क्या जरूरी है? सब मीडिया की महिमा है। मीडिया वही दिखाता है जो लोग देखना चाहते हैं। या तो आप कुछ बड़ा करते रहिए या फिर कंट्रोवर्सी में बने रहिए, लोकप्रिय बने रहेंगे। यहां क्रिकेट की सफलता के पीछे भी मीडिया और कंट्रोवर्सी, यह दोनों फैक्टर काम करते आ रहे हैं। नहीं तो हालात यह हैं कि आप भारत के लिए ओलंपिक मैडल भी जीत लो तो लोकप्रियता आपके लिए चार दिन की चांदनी जसी ही होगी। उसके बाद कोई आपको पूछेगा तक नहीं। बीजिंग ओलंपिक के पदक विजेताओं का हाल देख लीजिए। अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण पदक जीता, लेकिन आज उनकी चर्चा कौन करता है। सुशील कुमार ने कांस्य जीता लेकिन मुङो नहीं लगता कि भारत में उन्हें कोई पहचान मिल पाई हो। विजेंदर सिंह खुद के प्रयासों से कभी-कभी चर्चा में बने रहते हैं। कुलमिलाकर मेरा भ्रम टूट चुका है। मैं बीजिंग ओलंपिक से पहले तक यह सोचती थी कि यदि हममें से किसी खिलाड़ी ने भारत के लिए ओलंपिक पदक जीत लिया तो वह सचिन तेंदुलकर की तरह लोकप्रिय हो जाएगा, लेकिन अब स्थिति साफ है। यहां लोकप्रियता के पैमाने कुछ और ही हैं। सानिया मिर्जा और शोएब मलिक की शादी को लेकर चल रही ताजा कंट्रोवर्सी के बारे में क्या कहेंगी? यदि शोएब पाकिस्तानी न होते तो शायद वह (सानिया) इस तरह की कंट्रोवर्सी में नहीं पड़ती। भविष्य में यदि आपको इस तरह की कंट्रोवर्सी की सामना करना पड़ जाए तो? मुङो नहीं लगता कि मैं कभी इस तरह की कंट्रोवर्सी में पड़ूंगी। शादी और अफेयर फिलहाल दूर की बात हैं, लेकिन भविष्य में इतना तो असंभव है कि मैं कभी किसी पाकिस्तानी लड़के से रिश्ता जोड़ने के बारे में सोचूं भी। सानिया का प्रकरण ही हम लोगों के लिए काफी है। मेरा मानना है कि मैं अपने देश का प्रतिनिधित्व करती हूं इसलिए अपने देश के लोगों की भावनाओं को भी समझती हूं। और जहां तक शादी की बात है तो मुङो लगता है कि भारत में एक से बढ़कर एक लड़के मुङो मिल जाएंगे। इसके लिए पाकिस्तान या दुबई या कहीं और जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। ..तो आप देश के बच्चों और युवाओं को यही संदेश देंगी? बिल्कुल, मैं यही कहूंगी कि आप खेल को करियर के रूप में आजमा सकते हैं। आगे आंए देश के लिए खेलें। देश के गौरव को बढ़ाने का सपना देखें और देश के लिए जीतकर उसे पूरा करें। मैं भारत के लिए जीतती हूं, यह मेरे लिए सबसे संतोषप्रद है। मैं भारत के लिए खेलती हूं और मुङो भारतीय होने पर गर्व है। आप सभी की सोच भी यही होनी चाहिए। भारत में क्रिकेट के बाद बैडमिंटन वह खेल है जो गली-मोहल्लों और आंगनों में नेट लगाकर या बिना नेट के बड़े चाव से खेला जाता है। फिर भी पीछे क्यों बना हुआ है? मैं खुशकिस्मत थी कि मैंने आंगन की जगह सीधे कोचिंग सेंटर में इस खेल की शुरुआत की, लेकिन यह सच है कि भारत में यह खेल घर-घर के बच्चे खेलते हैं। गलियों में आप छोटे बच्चों को हाथ में रैकेट लिए देख सकते हैं। जरूरत है सही कोचिंग की और उचित मार्गदर्शन की। पेरेंट्स बच्चों को यह उपलब्ध करा सकते हैं। सरकार और खेल संघों की भूमिका को किस तरह आंकती हैं? वे चाहते तो हैं कि हमारे यहां खेलों का विकास हो लेकिन केवल चाहने से कुछ नहीं होता। आपको चीन से सीखना चाहिए। उसने ठान लिया कि उसे ओलंपिक में अव्वल रहना है तो उसने इसे करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने खुद खिलाड़ी तैयार किए और वो भी विजेता खिलाड़ी। खेलों के विकास के लिए क्या सुझाव दे सकती हैं? हमारे यहां जो हालात हैं उसे देखकर तो यही कहूंगी कि बच्चे खुद खेलना सीखें। खेलों में रुचि लेना शुरू करें। पेरेंट्स को भी आगे आना होगा। इस परंपरागत अवधारणा को छोड़ दें कि पढ़ाई करके इंजीनियर और डॉक्टर बनना ही जीवन की उपलब्धि है। खेलों में आगे बढ़कर भी आप शोहरत, दौलत और बड़े लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। दरअसल, हम हिंदुस्तानी रिस्क लेने से डरते हैं। हमें लगता है कि बच्चों को पढ़ाओ-लिखाओ और रोजगार से लगा दो। इसके अलावा हमें जीवन में शायद कोई अन्य विकल्प दिखता ही नहीं। हम भूल जाते हैं कि दुनिया में, और दुनिया ही क्यों भारत में भी अरबपति खिलाड़ियों की कमी नहीं है। हमें अपनी सोच बदलनी होगी। अपने नए और खूबसूरत लुक्स के बारे में कुछ बताइये। इसके लिए कुछ खास कर रही हैं? सही कहा आपने, मैं आजकल अपने लुक्स पर भी ध्यान दे रही हूं। फिगर पर भी। अब तक मैं ध्यान नहीं देती थी। फिटनेस को लेकर मैं काफी सजग हो चुकी हूं। हरियाणा के बारे में क्या राय है? हालांकि लोग मुङो हैदराबादी बाला कहते हैं, लेकिन हरियाणा मेरी जन्मभूमि है और मुङो जाट होने पर बेहद गर्व है।
Wednesday, April 14, 2010
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