10-11 अप्रैल को सोशल नेटवर्किंग साइट ‘ट्विटरज् पर आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी के लिखे एक छोटे से ‘ट्वीट'ने भारतीय मीडिया के इतिहास के संभवत: सबसे बड़े ‘मीडिया ट्रायल' की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। 12 से 18 अप्रैल तक, सात दिन भारतीय मीडिया ने विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर का सुनंदा पुष्कर थ्योरी पर जमकर ‘ट्रायल' किया। हालांकि विपक्षी राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी ने 13 अप्रैल को ही थरूर के इस्तीफे की मांग कर दी थी, लेकिन थरूर से इस्तीफा लेने में सरकार और कांग्रेस को छह दिन लग गए। कांग्रेस आलाकमान ने फैसला प्रधानमंत्री पर टाल दिया, जो कि 14,15 को वाशिंगटन में थे, लेकिन उनके लौटने तक मीडिया ट्रायल में उलङो थरूर के भाग्य का फैसला लगभग हो चुका था। सुनंदा-थरूर थ्योरी पर मीडिया में हर घंटे ‘सबूतों का पोस्टमार्टम'चल रहा था। ..और छह दिनों के अंदर ‘मामले की पूरी छानबीन' कर मीडिया ने अपना ‘फैसला' सुना दिया था कि- थरूर का जाना तय। प्रधानमंत्री ने सातवें दिन यानि 18 अप्रैल की रात मीडिया के ‘फैसले' पर मुहर लगा दी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ज्यों का त्यों बना रहा कि क्या थरूर वाकई दोषी थे? क्या उन पर दोष सिद्ध होने के प्रमाण प्रधानमंत्री के सामने थे? यदि थे, तो सार्वजनिक क्यों नहीं किए गए? यदि थे तो किए जाने चाहिए थे, आखिरकार यह एक निर्वाचित युवा नेता और केंद्रीय मंत्री के चरित्र पर उठाए गए सवालों के साथ-साथ सरकार की जनता के प्रति पारदर्शिता का विषय भी था। सवाल मीडिया की कार्यप्रणाली पर भी उठता है। इस बात पर संशय बना रहेगा कि उक्त संपूर्ण मसले पर क्या मीडिया को इंस्ट्रूमेंट के रूप में इस्तेमाल किया गया? और यह भी कि मीडिया ने इस पूरे घटनाक्रम में जो तथ्य प्रस्तुत किए उनमें से 99 फीसदी ‘‘सूत्रों के हवाले'' से थे। ‘सूत्रों' ने जो भी बताया, मीडिया ने प्रस्तुत किया। इस मामले में सूत्रों के ‘सूत्रधारों' की भी भूमिका स्पष्ट रूप से निहित थी। क्या मीडिया ने इस भूमिका को ‘एडिट' किया। सूत्रों से मिल रहे तथ्यों को उनके सूत्रधारों की पृष्ठभूमि पर परखा गया? संभवत: कहीं न कहीं कमी बनी रही। नहीं तो थरूर का पक्ष भी तर्क और साक्ष्यों पर परखा जा सकता था। इस बात पर तवज्जो नहीं दी गई। क्या यह मीडिया की गैरजरूरी मजबूरी नहीं कि जब वह ट्रायल करने पर उतरता है तो ‘अपनी थ्योरी' को सच साबित होते देखने पर आमादा हो जाता है?
मीडिया मॉनीट¨रग संस्था सीएमएस मीडिया लैब ने इस पूरे घटनाक्रम के दौरान की गई अपनी एक स्टडी में बताया कि अंग्रेजी चैनल एनडीटीवी 24*7 ने इस विवाद की खबरों पर एक हफ्ते में सबसे ज्यादा 668 मिनट खर्च किए जबकि अंग्रेजी के ही अन्य चैनल सीएनएन आईबीएन ने 617 मिनट और 30 सेकेंड का समय खर्च किया। इनके अलावा पूरा भारतीय मीडिया थरूर-मोदी पर लगातार खबरें देता रहा। 12 अप्रैल से लेकर आज तक यह विषय मीडिया ट्रायल के घेरे में है। सूत्रों के हवाले से तमाम खबरें आ रही हैं। कुछ का खंडन हो रहा है तो कुछ रहस्य को गहराती जाती हैं।
थरूर के बाद ललित मोदी का भी जमकर मीडिया ट्रायल हुआ। मीडिया के जरिए तमाम आरोप मोदी पर जड़े गए हैं। ताज्जुब करने वाली बात है कि आरोप लगाने वाले लोग न के बराबर हैं, परिदृश्य से नदारद हैं, लेकिन आरोपों की कमी नहीं है। आरोप सूत्रों के हवाले से लग रहे हैं? सूत्रधार कौन है? पता नहीं। मीडिया को पता है, लेकिन बता नहीं सकता। आख़िर सूत्रों के साथ विश्वसनीयता बनाए रखना भी तो एक उसूल है।
मोदी चालाक हैं। वह भांप गए। उन्होंने मीडिया ट्रायल को बारीकी से परखकर बहुत बढ़िया दांव चला है। उन्होंने 26 को होने वाली बहुप्रतीक्षित बैठक में आने का एलान करते हुए आज कहा कि- ‘‘मैं अध्यक्ष और आयुक्त के रूप में संचालन परिष की बैठक में हिस्सा लूंगा और इसकी अध्यक्षता करूंगा। मैंने संचालन परिष का एजेंडा जारी कर यिा है।'यही नहीं इसके तुरंत बा मोदी ने एकल एजेंडा भी मीडिया में जारी कर कहा कि परिष के सस्यों को उन्हें अपनी शिकायतें लिखित में और स्तोजी सबूत के साथ ेनी होंगी। मोदी ने कहा, ‘संचालन परिष के अध्यक्ष, परिष के किसी अन्य सस्य या भारतीय क्रिकेट बोर्ड के खिलाफ परिष के सस्यों की किसी भी लिखित शिकायत पर चर्चा एजेंडा में शामिल है।' उन्होंने मीडिया के माध्यम से कहा, ‘संचालन परिष के सस्यों से आग्रह किया गया है कि '26 अप्रैल की सुबह होनेोली बैठक में इस तरह की सभी शिकायतों को अध्यक्ष और आयुक्त के पास जमा करायें। इन शिकायतों के साथ 'संबंधित दस्तावेज भी' ताकि उनका जाब यिा जा सके।
मोदी को पता है कि उन पर लगाए जा रहे तमाम आरोप ‘सूत्रों के हवाले से' हैं। इसलिए उन्होंने सीधे इसी जगह चोट की है। अब उनके विरोधियों के पास खुलकर सामने आने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। उन्होंने न केवल विरोधियों को सामने आने का सीधा न्योता दिया है बल्कि अपने खिलाफ शिकायतों को संबंधित दस्तावेज के साथ मांगकर उन्होंने मीडिया ट्रायल को भी सीधी चुनौती दे डाली है। अब न केवल मीडिया बल्कि उनके विरोधी संचालन परिष सस्यों के लिये भी दस्तावेजी सबूत पेश करना मुश्किल होगा क्योंकि ऐसे दस्तावेज जांच एजेंसियों के पास ही हो सकते हैं।
अब मोदी विरोधियों के पास ए क ही रास्ता है किसी भी सूरत में मोदी को इस बैठक में हिस्सा लेने रोकें। और उनके पास समय है केवल 12 घंटे का।
द
Sunday, April 25, 2010
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